"नेताओं के बच्चे विदेशों में शिक्षा ले रहे, देश के बच्चे शिक्षा से दूर — यह कैसी समानता?"

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देश की नई आवाज़ 

"नेताओं के बच्चे विदेशों में शिक्षा ले रहे, देश के बच्चे शिक्षा से दूर — यह कैसी समानता?"

Trishul News भारत | विशेष रिपोर्ट | विशेषज्ञ करण सक्सेना

आज देश में शिक्षा का हाल यह है कि जहाँ आम जनता अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने को मजबूर है, वहीं बड़े नेताओं और अधिकारियों के बच्चे विदेशों के नामी-गिरामी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहे हैं। सवाल उठता है — आखिर क्यों देश का भविष्य, यानी हमारे बच्चे, बेहतर शिक्षा से वंचित रह जाएँ?

सरकारी नीतियाँ शिक्षा के अधिकार की बात तो करती हैं, पर हकीकत में सरकारी स्कूलों की हालत किसी से छिपी नहीं है — शिक्षक की कमी, संसाधनों का अभाव और बढ़ती फीस ने गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों की रीढ़ तोड़ दी है।

वहीं, नेता वर्ग अपने बच्चों को विदेश भेजकर न केवल विशेष सुविधाएँ दिलवा रहे हैं, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश भी दे रहे हैं कि उन्हें अपने ही देश की शिक्षा प्रणाली पर भरोसा नहीं है।

यह विरोधाभास केवल शिक्षा तक सीमित नहीं है — यह उस सोच का प्रतीक है जिसमें “जनता के लिए एक व्यवस्था” और “सत्ता वालों के लिए दूसरी व्यवस्था” बन चुकी है।

अब वक्त आ गया है कि सवाल पूछा जाए:

👉 क्या नेताओं के बच्चों की तरह हर भारतीय बच्चे को समान शिक्षा का अधिकार नहीं होना चाहिए?

👉 क्या शिक्षा व्यवस्था केवल अमीरों की पहुँच में रहेगी?

👉 और कब तक आम जनता अपने बच्चों के सपनों को राजनीतिक स्वार्थों के नीचे कुचलेगी ?

लेखक:

🖋️ विशेषज्ञ करण सक्सेना

(Trishul News भारत – "देश की नई आवाज़")





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